मायूसी ने डाला डेरा
पाटलिपुत्र की धरा थर्रा उठी
हाँ टूट गए सपने
बह गए अरमान पानी की धार में
जल की अधिकता ने कर दिया
तबाह बर्बाद हो गया सबकुछ
जिस घर में खुशियों के दीप थे जलने वाले
उस घर में मायूसी ने डाला है डेरा।।
जल ही जल सर्वत्र
बच्चों की चीखें,बेसहारों की असहनीय पीड़ा ने
पूरी तरह झकझोर दिया था अंतर्मन को
कई सपने पूरे होने से पहले टूट गए
आँखों से आँसू रोके नहीं रुके विपत्ति की उस घड़ी में
हाँ,जिस घर में खुशियों के दीप थे जलने वाले
उस घर में मायूसी ने डाला है डेरा।।
कितनों का घर इस कदर है उजर
गया कि बसने में फिर लगेंगे कई बरस
तिनका-तिनका जोड़कर जिन्होंने
बनाया था अपना छोटा-सा आशियाना
उनका आशियाना है,उजर गया
हाँ,जिस घर में खुशियों के दीप थे जलने वाले
उस घर में मायूसी ने डाला है डेरा।।
क्या इस असहनीय आपदा के लिए
दोषी नहीं है राज्य की सरकार
हाँ दोषी है सरकार भी
अरे! दुःख दूर नहीं कर सकते बेसहारों का तो
दुःख कम करने के लिए सार्थक कदम तो उठाते
हाँ जिस घर में खुशियों के दीप थे जलने वाले
उस घर में मायूसी ने डाला है डेरा।।
✍️✍️कुमार संदीप
बिहार-मुजफ्फरपुर(ग्राम-सिमरा)

