हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!

हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती! ज्ञान का वरदान प्रदान कर माँ हम सब हैं बालक तेरी माँ ममता की छांव में शरण दे माँ अहंकार अंकुरित न हो मन में सदा सद्बुद्धि प्रदान कर माँ।। हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती! अज्ञानता दूर कर दे माँ ईर्ष्या न करुँ कभी किसी से भी सुंदर विचार मनContinue reading “हे हंसवाहिनी! हे माँ सरस्वती!”

कविता-उड़ती पतंग

नव सृजन विहान मंच का हृदयतल से आभार।निर्णायक मंडल का कोटिशः आभार।गुरूजनों व माता-पिता के स्नेहाशीष व मित्रों के अपार स्नेह व प्रेम से पतंग विषय पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता में मुझे तृतीय स्थान मिला।गुरुजनों व मित्रों का स्नेहाशीष सदैव बना रहे यही अभिलाषा है।सादर_प्रणाम प्रतियोगिता में विजेता रही रचना=============== पतंग!हाँ उड़ती पतंग देती हैContinue reading “कविता-उड़ती पतंग”

कल रात सपने में

कल रात सपने में पापा को मैंने देखा चुपचाप बिस्तर पर सोए टकटकी निगाहों से मुझे देख रहे थे,ऐसा लग रहा था मुझसे बहुत कुछ कहना चाह रहे थे। कल रात सपने में पापा मेरी नजरों के सामने थे अनायास मेरे चेहरे पर मुस्कान खिल गई मुस्कान भी क्यूं न खिले? आखिर कई वर्ष बादContinue reading “कल रात सपने में”

जिंदगी

जिंदगी मत कर घमंड इस मिट्टी के शरीर पर ज़िंदगी भर जिस लाल पर तू सबकुछ लुटाएगा अंत समय में वह लाल तुझे कफन भी नापकर दिलाएगा यही ज़िंदगी है दुःख रहने के बहाने छोडकर खुश रहने का हुनर ढूंढ कोई न साथ तेरा देगा तू आया था अकेला और अकेला ही इस जग सेContinue reading “जिंदगी”

कविता-धरती माँ की पुकार

तुम इंसान भी ना कितने स्वार्थी हो न तो तुम ईश्वर समान माँ को समझ सके और न ही धरती माँ को केवल धरती माँ कहते हो कभी पुत्र धर्म भी निभाया करो मुझे इस तरह न सताया करो धरती माँ क्या नहीं देती सब कुछ तो कर देती हूँ न्योछावर तुम पर मेरे हृदयContinue reading “कविता-धरती माँ की पुकार”

कविता-निर्धन हूँ साहब!

निर्धन हूँ साहब! निर्धन हूँ साहब ! बारिश की बूँदों को भी खुशी का पैगाम समझता हूँ। निर्धन हूँ साहब ! जब उड़ाता हूँ कागज की पतंगे उस वक्त अपने आप को खुश कर लेता हूँ कि उड़ रहा हूँ मैं भी आसमां में निर्धन हूँ साहब ! फटे कपड़े पहनकर भी खुश रह लेताContinue reading “कविता-निर्धन हूँ साहब!”

छठ

“छठ का पर्व हो और बच्चों के लिए नए कपड़े नहीं खरीदूँ…ऐसा भी भला हो सकता है” गोविंद मन ही मन ख़ुद से संवाद कर रहा था! ऐसा कोई भी पर्व नही गुज़रता था, जिस पर्व में गोविंद अपने बच्चों के लिए कपड़े न खरीदता हो! छठ पर्व में ख़ुद के लिए आज तक उसनेContinue reading “छठ”

मंजिल का राही

मंजिल का राही तू निरंतर प्रयास कर मंजिल की राह पर चल राही न परवाह कर कष्ट की मिलेगी सफलता निश्चित ही बस मंजिल का राही तू निरंतर प्रयास कर मुश्किलों में राही तू मुस्कुरा तकलीफों को मात देकर तू नव इतिहास रच राही तू मत घबरा बस मंजिल का राही तू निरंतर प्रयास करContinue reading “मंजिल का राही”

किसान

किसान किसान का जीवन जीना नहीं आसान होता है रोते हैं बिलखते हैं इनके दर्द फिर भी न निकलती हैं इनके मुख से आह ! किसान का जीवन जीना नहीं आसान होता हैं जब आती हैं आँधी घर का तिनका-तिनका बिखर जाता फिर बुनते हैं झोपड़ी गुजारने को दिन चार। किसान का जीवन जीना नहींContinue reading “किसान”

रिश्ते

रिश्ते बदलते परिवेश में बदल रहे लोग, हुआ क्या मनुज को न जाने क्या ? बनने से ज्यादा बिगड़ते रिश्ते। कुछ रिश्ते टूट रहें, अहम से कुछ रिश्ते टूट रहे वहम से, कब होंगे सजग सभी, बनने से ज्यादा बिगड़ते रिश्ते। मैं हूँ सही, मैं नहीं गलत का है उलझन न जाने है कौन सहीContinue reading “रिश्ते”

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