निर्धन हूँ साहब!
निर्धन हूँ साहब !
बारिश की बूँदों को भी
खुशी का पैगाम समझता हूँ।
निर्धन हूँ साहब !
जब उड़ाता हूँ कागज की पतंगे
उस वक्त
अपने आप को खुश कर लेता हूँ कि
उड़ रहा हूँ मैं भी आसमां में
निर्धन हूँ साहब !
फटे कपड़े पहनकर भी
खुश रह लेता हूँ
है ख्वाहिश कि …
नयी पोशाक मैं भी पहनू पर …
ये मुमकिन हो कैसे?
निर्धन हूँ साहब !
जब भूख होती है तो …
पी लेता हूँ दो घूँट नीर की
ताकि ….
कुछ समय तक भूख मिट सके
निर्धन हूँ साहब !
रहता हूँ खुले आसमां में
महफूज हमें भी ख्वाहिश है की…
रहूं आलिशान बंगलों में
निर्धन हूँ साहब !
करवटें बदल-बदलकर
काटता हूँ रात …
असहनीय दुख सहन करता हूँ
काश! हो ऐसी सुबह जो …
जब बदल जाए जीवन
निर्धन हूँ साहब !
दुखों का अंबार लिए चलता हूँ
फिर भी …
झूठी खुशी से
चेहरे पर मुस्कान लाता हूँ कि …
कोई भूखा न कहे
पागल न कहे
असोभनीय नामों से न पुकारे
✍️कुमार संदीप

