छठ

“छठ का पर्व हो और बच्चों के लिए नए कपड़े नहीं खरीदूँ…ऐसा भी भला हो सकता है” गोविंद मन ही मन ख़ुद से संवाद कर रहा था! ऐसा कोई भी पर्व नही गुज़रता था, जिस पर्व में गोविंद अपने बच्चों के लिए कपड़े न खरीदता हो! छठ पर्व में ख़ुद के लिए आज तक उसने नए कपड़े नहीं खरीदे कभी! उसका सारा दिन खेत में गुज़रता और बच्चों के भविष्य की चिंता में रात करवटें बदल-बदलकर बीतती थी।गोविंद अपने दोनों बेटे और पत्नी के लिए नये कपड़े खरीद कर लाया। उसका छोटा बेटा विश्वास उम्र में छोटा तो ज़रूर था पर उसके विचार उच्च थे…उसने कहा “पापा क्या आप इस बार फिर से ख़ुद के लिए नए कपड़े नहीं लाए?” गोंविद ने कहा “बेटे तू चिंता मत कर! मेरे पास पहले से ही एक कुर्ता और धोती है,मैं वही पहन लूंगा!”
“पर पापा आपका कुर्ता तो बहुत पुराना है?और उसका रंग भी बेरंग हो चुका है?” विश्वास ने तर्क दिया!
पर गोविंद बेटे की बातों को अनसुना करते हुए काम पर चला गया। विश्वास अगले ही दिन अपने नए कपड़े लेकर बाजार पहुंच गया और वो सभी कपड़े के दुकानदार से मिन्नतें करने लगा कि “साहब आप मेरी नई शर्ट और पैंट ले लो और बदले में मुझे मेरे पापा की नाप का एक नया कुर्ता दे दो।” सभी दुकानदारों ने कपड़े लेने से मना कर दिया ..इससे विश्वास निराश होकर रोते हुए वापस घर की ओर चल पड़ा ।रास्ते में एक सज्जन दुकानदार ने रोते देखकर उसे अपने पास बुलाया और कहा कि “बेटे क्या हुआ,क्यों रो रहे हो?” विश्वास ने कहा “काका जी क्या आप मेरे ये नये कपड़े लेकर उसके बदले में एक कुर्ता देंगे?”
दुकानदार मान गया,और उसने विश्वास को उस कपड़े के बदले में नया कुर्ता दे दिया। ! अपने हाथों में कुर्ते को देखकर वह बहुत खुश हुआ और उसकी आँखों से खुशी के आँसू बह निकले ।उसने दुकानदार के चरणस्पर्श कर कहा ” काका आपने आज मुझे बहुत बड़ा तोहफा दिया है, मैं आजीवन आपका आभारी रहूंगा” और वह घर वापस आ गया।
छठ घाट पर जाने का समय हो चुका था,सभी तैयार हो गए थे और परेशान थे क्योंकि विश्वास पूरे दिन घर पर जो नहीं था। तभी वह आता दिखाई दिया! गोंविद ने हुलसते हुए कहा “बेटे कहाँ था तू इतनी देर से?पता है हम सब कितना परेशान हो रहे थे? चल अब जल्दी से नए कपड़े पहनकर आ जा। विश्वास अपने पापा की उंगली पकड़ कमरे की ओर चल दिया और पापा के हाथों में कुर्ता रखकर कहा “पापा आप पुराना वाला कुर्ता पहनकर मत जाइए! इस नए कुर्ते को पहन लीजिए।”
“बेटे, कहाँ से लाया ये नया कुर्ता?किसने दिया तुझे?”गोविंद ने आश्चर्य से पूछा!
“पापा किसी ने नहीं दिया,मैं अपने नये कपड़े दुकानदार को देकर आपके लिए ये कुर्ता ले आया।” बेटे की बात सुनकर गोविंद के नयन सजल हो गये, वह उसको सीने से लगाकर रोने लगा।

” पापा क्यूँ रो रहे हैं आप?” विश्वास ने उनके आँसू पोछे “इतने दिनों से आप मेरे ,भइया और माँ के लिए हर साल नये कपड़े लाते थे,पर ख़ुद के लिए कभी कुछ नही लायेे.. मेरी भी इच्छा है कि मेरे पापा नये कपड़े पहनकर छठ घाट पर जायेंं! वैसे भी पापा मेरे पास कपड़ों की कोई कमी नहीं है!पिछले साल वाले कपड़ों को मैंने अब तक सहेज कर रखा है,मैं वही पहन लूंगा।अब जल्दी से तैयार हो जाइये और आप ही तो कहते हैं पापा कि आँखों में आँसू अच्छे नहीं लगते। फिर आज तो खुशियों का महान पर्व छठ है,चलिए मैं भी जाता हूँ तैयार होने।”

✍️कुमार संदीप
स्वरचित,ग्राम-सिमरा, पोस्ट-श्री कान्त,अंचल-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर

सीमित संसाधनों के बीच बसों में रेलगाड़ियों में धक्के खा कर भी शहर से आकर अपने गाँव में छठ घाट पर छठ पर्व मनाने में आनंद की जो अनुभूति  होती है,उसकी तुलना नही की जा सकती।आर्थिक रुप से कमजोर और दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए दिन भर परेशान रहने वाले दीन दुखियों के चेहरे पर भी इन दिनों जो खुशी होती है,उस खुशी के विषय में कुछ लिख पाना नामुमकिन है।ईश्वर सभी का मंगल करे।कोई भी दो वक्त की रोटी और सामान्य जरुरतों के लिए न तरसे।अपनों से असमय किसी का साथ न छूटे।हर परिवार में हर आँगन में खुशियाँ ही खुशियाँ हो।

Published by Sandeep Kumar mishra

विद्यार्थियों के हित में सदैव तत्पर रहना मूल लक्ष्य है- गुरु दीक्षा क्लासेज(Sandeep kumar mishra)

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