क्यूँ छीन लिए असमय? हे ईश्वर!मेरे खुदा मेरे पिता को कर दो न वापस हे ईश्वर मेरे पिता को।
भला हुई क्या खता उस त्याग और तपस्या की साक्षात मूरत से? कि छीनी आपने मुझसे मेरे खुदा को कर दो न वापस हे ईश्वर मेरे पिता को।
जानता हूँ कि इस जगत में कोई न आया है सदैव जीने को परंतु क्या हे ईश्वर कोई जी भर जी भी नहीं सकता?कर दो वापस हे ईश्वर मेरे पिता को।
जिनकी उंगलियों को थाम मैंने चलना सिखा,अच्छे बुरे की समझ मिली जिनसे।हे ईश्वर!क्यूँ छीन लिए असमय मेरे ईश्वर मेरे पिता को।
©कुमार संदीप


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